प्राचीन काल के म प्र से सम्बंदित राजवंश
कारूष वंश
इस वंश का संस्थापक राजा मनु के पुत्र कारूष को माना जाता है।
यह राजवंश वर्तमान म प्र के बघेलखंड क्षेत्र में स्थित था।
इषवाकु वंश
इस वंश का संस्थापक मनु के पुत्र इषवाकु को माना जाता है। वर्तमान में दण्डकारण्य क्षेत्र जो की छत्तीसगढ़ में स्थित है पर इस वंश का शासन था।
हैहय वंश
यह वंश वर्तमान म प्र के महेश्वर नामक स्थान के आस पास स्थित था ।
इस वंश की स्थापना राजा यधु के पुत्र हैहय ने की थी।
इस वंश की राजधानी महिष्मति वर्तमान महेश्वर थी।
हैहय वंश के राजा कीर्तवीर्य ने लंका के राजा रावण को हराया था।
राम के वनवास से सम्बंदित साक्ष्य हमें म प्र के दण्डकारण्य क्षेत्र से हमें प्राप्त होते है।
भारत के प्राचीन ग्रंथों में वर्णिक की गई लंका को कुछ इतिहासकारों ने जबलपुर एवं दण्डकारण्य क्षेत्र में स्थित माना है।
भगवान परशुराम का जन्म इंदौर के महू के निकट जानापाग नामक स्थान पर हुआ।
** महाजनपद काल **
6वी शताब्दी ई पु में भारत में 16 महाजनपद काल का उदय हुआ जिसमें से दो महाजनपद वत्स और चेदि वर्तमान म प्र राज्य में स्थित थे इसके अतिरिक्त एक अन्य महत्वपूर्ण महाजनपद अवंति को भी म प्र में शामिल माना गया है।
अवंति महाजनपद दो राज्यो उत्तरी अवंति तथा दक्षिणी अवंति में विभाजित था। उत्तरी अवंति की राजधानी उज्जैनी तथा दक्षिणी अवंति की राजधानी महिष्मति थी।
महात्मा बुद्ध के समकालीन अवंति के प्रसिद्ध राजा चंडप्रहोत थे।
मौर्य साम्राज्य
मौर्य साम्राज्य के सबसे प्रतापी राजा अशोक थे। राजा अशोक ने विदिशा के एक व्यापारी की पुत्री महादेवी से विवाह किया।
अशोक ने साँची के स्तुपो के निर्माण अपनी पत्नी महादेवी के कहने पर ही करवाये थे।
अशोक ने उज्जैन के पास वैश्य टोकरी का निर्माण भी करवाया था।
राजा बनने से पहले अशोक अवंति राज्य का प्रान्तपति था।
चीनी यात्री फायान के अनुसार अशोक ने 84000 स्तुपो का निर्माण करवाया था।
अशोक द्वारा जारी किए गए विभिन्न अभिलेखों में से दो अभिलेख म प्र में प्राप्त होते है।
दतिया जिले के गुजर्रा नामक स्थान से प्राप्त अभिलेख में अशोक को अशोक के नाम से सम्बोदित किया गया है।
म प्र की जबलपुर जिले के रुपनाथ नामक स्थान से अशोक का एक अन्य अभिलेख प्राप्त हुआ है।
मौर्योत्तर काल ( शुंग काल )
शुंगवंशी राजा पुष्यमित्र शुंग ने विदिशा को अपनी राजधानी बनाया तथा साँची के स्तुपो में तोरण द्वार बनवाये।
शुंग वंश के एक अन्य राजा भागवद्र के समय यूनानी राजपूत हेलियोडोरस विदिशा या वेशनगर आया था तथा यहाँ उसने गरुण स्तम्भ लगवाया जो भारत में भागवत धर्म का पहला साक्ष्य है।
सात वाहन वंश उल्लेख साँची लेख में मिलता है।
इण्डो ग्रीक (हिन्द यूनानी राजा) मिनांडर के सिक्के म प्र के बालाघाट जिले में मिले है।
उज्जैन में शक्तराजाओं की एक शाखा का मार्दक का आदिपत्य था जिसका संस्थापक यशोमति नामक राजा था।
शकों का सबसे प्रसिद्ध राजा रुद्रदामन था जिसने संस्कृत का पहला अभिलेख जूनागढ में लगवाया था।
शकों का अंतिम राजा रुद्रसेन तृतीय था जिसे चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने हराया था तथा शको का राज्य म प्र से समाप्त किया।
कुषाढ वंश के राजा कनिष्क के सिक्के हमे शहडोल जिले से प्राप्त होते है।
जबलपुर के भेड़ाघाट से कुषाढ काल में बनी बौद्ध प्रतिमाएं प्राप्त होती है।
समुद्रगुप्त द्वारा म प्र के अधिकांश भाग तथा नर्मदा नदी की उत्तरी सीमा तक अपना राज्य स्थापित कर लिया था।
समुद्रगुप्त ने मध्यप्रदेश से होकर ही दक्षिण भारत पर आक्रमण किया था तथा म प्र के 9 गणराज्यो को जीता था।
समुद्रगुप्त के सेनापति भानुगुप्त के अभिलेख से वह जानकारी मिलती है कि एक सैनिक गोपिराज की मृत्यु के बाद उसकी विधवा सती हो गयी थी जिनके साक्ष्य ऐरण नामक स्थान से मिले है।
चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने उज्जैनी को अपनी दूसरी राजधानी बनाया था और यही पर उसके दरबार में नवरत्न निवास करते थे इन नवरत्नों में प्रमुख कालिदास थे कालिदास को भारत के शेक्सपियर कहा जाता है।
म प्र का अन्य प्रमुख राजवंश वाकाटक था जिसकी स्थापना विंध्यशक्ति नामक राजा ने की थी।
किसी वंश के एक प्रमुख राजा प्रवरसेन प्रथम ने चार अश्वमेघ यज्ञ करवाये थे।
प्रवरसेन द्वितीय के कुछ अभिलेख हमें म प्र के छिंदवाड़ा , बैतूल, सिवनी, बालाघाट आदि जिंलो में से मिलते है।
म प्र का एक अन्य प्रमुख राजवंश औलिकर राजवंश था जो वर्तमान म प्र के मंदसौर तथा उसके आसपास के क्षेत्र में निवास करता था जिसकी स्थापना जयवर्धन राजा नामक ने की थी।
इस वंश का सबसे प्रमुख शासक यशोवर्भन या यशोवर्धन था जिसका एक अभिलेख हमें मंदसौर से प्राप्त होता है।
-- गुर्जर प्रतिहार वंश --
यह मूल्यतः राजस्थान से सम्बंदित वंश था जिसकी स्थापना हरिश्चन्द्र ने की थी।
म प्र में इस वंश की स्थापना नागभट्ट प्रथम नामक राजा ने की तथा अरबो के आक्रमण से अपने राज्य की एवं उज्जैनी को अपनी राजधानी बनाया।
इस वंश का सबसे प्रतापी राजा मिहिरभोज था जिसका उल्लेख हमें ग्वालियर और कहला अभिलेखों से मिलता है।
Very very Important
-- चंदेल वंश --
चंदेल वंश म प्र का अत्यधिक प्रसिद्ध वंश है जो बुंदेलखंड क्षेत्र में था।
इस वंश का संस्थापक नन्नूक नामक राजा था
इस वंश के एक अन्य राजा जयशक्ति के नाम पर इस क्षेत्र को जेजागभुक्ति भी कहा जाता है।
चंदेल प्रतिहारों के सामंत थे।
चंदेलों की राजधानी महोबा थी तथा इनका प्रसिद्ध किला कालिंजर था।
चंदेलों में अनेक साहसकीय राजा हुए जिनमे से धंगदेव एक प्रमुख राजा था।
म प्र के खजुराहो के मंदिरों का निर्माण चंदेल राजाओं ने ही कराया था तथा इनका निर्माण 950 AD से 1050 AD के मध्य में करवाया था।
धंगदेव ने खजुराहो में पार्श्वनाथ और विश्वनाथ मंदिरों का निर्माण करवाया था।
इस वंश का एक अन्य प्रतापी राजा विद्याधर चंदेल था जिसने मेहमूद गजनवी क्र आक्रमण से अपने राज्य की रक्षा की थी तथा मेहमूद गजनवी के विरुद्ध बने विभिन्न राजाओं के हिन्दू संघ के अपनी सहायता प्रदान की थी तथा इस संघ से भागकर आये प्रतिहार वंश के राजा राज्यपाल की हत्या की।
इस वंश का अंतिम स्वतंत्र राजा परमार्दी देव था जिसके राज्य में दो प्रसिद्ध सेनापति आल्हा ऊदल निवास करते थे।
परमार्दी देव तथा दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान के बीच संघर्ष चलता रहता था।
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